Sadhana Shahi

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गांँव और शहर (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु21-Mar-2024

गांव और शहर (कहानी)

मोहन कई दशक पहले ही अपना गाॅंव छोड़कर शहर चला गया था ।वहाॅं पर उसने अपना खुद का व्यापार शुरू किया था , और धीरे-धीरे उसका व्यापार अच्छा चल गया था।गाड़ी ,बंगला, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा शहर की सारी सुख-सुविधाएँ उसके पास मौजूद थीं। उसका जीवन बड़े ही शानो-शौकत से चल रहा था।जबकि मोहन का छोटा भाई सोहन गाॅंव में अपने 5 बीघा ज़मीन को जोत बो कर अपनी खुशहाल ज़िंदगी जी रहा था ।दोनों भाई अपनी- अपनी दुनिया में ख़ुश थे। किसी को किसी से कोई भी गिला- शिकवा नहीं था। एक दिन सोहन का बेटा आकर उनसे बोला -पिताजी बड़े पापा शहर में रहते हैं। उनका घर कितना सुंदर है! उनके पास बड़ी सी गाड़ी भी है , आप भी गाड़ी क्यों नहीं खरीदते हैं? हमें भी बहुत मन करता है बड़ी सी गाड़ी में घूमने का।तब सोहन बोला बेटा, इस थोड़े से खेत में खाने-पीने के अलावा इतना बचत नहीं होता कि हम लोग गाड़ी खरीदें। और फिर गाड़ी खरीदने के बाद गाड़ी के मरम्मत ,उसके पेट्रोल आदि में भी तो ख़र्चा लगता है न। इसलिए हम गाड़ी नहीं खरीद सकते ।तब सोहन का बेटा बोला पापा पता है मेरी क्लास में एक बच्चा है उसका नाम पवन है उसके यहाॅं भी गाड़ी खरीदी गई है । तब सोहन ने अपने बेटे से कहा -बेटा उन लोगों के पास खेत अधिक होंगे ,पैदावार अधिक होती होगी ,जब पैदावार अधिक होगी तो बचत अधिक होगी ।इसलिए वो लोग खरीद पाए होंगे ।

तब सोहन का बेटा कुछ प्रसन्न होते हुए कहा- नहीं पापा नहीं उन लोगों के पास खेत अधिक नहीं है, बल्कि उस थोड़े से खेत में से ही उन लोगों ने अपना थोड़ा खेत बेच दिया और उन पैसों से एक गाड़ी ले लिए । यह सुनकर सोहन को मानो साॅंप सूॅघ गया हो । क्या !खेत बेचकर गाड़ी लिये? बिल्कुल ठीक नहीं है बेटा। हमें अपनी धरती माॅं को बचाकर रखना चाहिए ,यह हमारे बड़े- बुजुर्गों की अमानत है,इसे हमें बेचना नहीं चाहिए । उनका बेटा बड़ा ही उदास था सबके पास गाड़ी है सिर्फ़ हम लोगों के पास नहीं है।

तभी कोरोना का दौर आया और इसने तो बड़ों- बड़ों की कमर तोड़ दिया । कमर टूटने वालों में उनके बड़े भाई मोहन का भी नाम था ।मोहन का धंधा मंदा चलने लगा और मंदा चलते- चलते एक दिन ऐसा आया कि बिल्कुल ही उसे बंद करना पड़ा ।अब शहर में क्या खाएं ? कैसे खर्चे चलाएं ? जितनी सुविधाएंँ उतना खर्चा! चीजें भी खाती हैं,खरीदे हैं तो उसके रख-रखाव में भी पैसे लगते हैं। दिन बद से बदतर होते गए ।तब अपने छोटे भाई को एक दिन फ़ोन किया और अपने हालात के बारे में बताया तब सोहन ने कहा भाई मैं तो तुम्हें पहले ही समझा रहा था खेत मत बेचो गिरही रहने दिया जाता है। दुनिया में कहीं भी रहो जब तुम्हारी धरती माॅं रहेंगी तो लौट के आने का ज़गह रहेगा। लेकिन तुम एक बात नहीं माने । खैर भैया, मैं आपकी अधिक मदद औतो नहीं कर सकता लेकिन आप चाहें तो आकर मेरे साथ मेरे इस गरीबी में जीवन व्यतीत कर सकते हैं।तब मोहन अपने परिवार के साथ आया और पूरे एक वर्ष जब तक की स्थिति सामान्य नहीं हुई सोहन के यहाॅं ही रहा। स्थिति सामान्य होने के बाद अपने परिवार के साथ वापस गाजियाबाद जाने लगा और जाते-जाते वह अपने छोटे भाई के पैर पकड़कर फूट-फूट कर रोने लगा। सोहन भैया को उठाया और गले लगा लिया क्या कर रहे हैं भैया !मुझे नर्क में डाल रहे हैं। तब मोहन ने बोला नहीं मेरे भाई तुम छोटे होकर बड़े हो गए और मैं बड़ा होकर छोटा हो गया हूॅं। और इस तरह से गाॅंव ने शहर को आसरा दिया और सोहन की अपने पिता से नाराज़गी भी समाप्त हो गई।

विकट परिस्थितियों में यदि गाॅंव न होता तो शहर के लोग शायद भूखों मर गए होते।

सीख-आज शहर में घर- मकान खरीदने की होड़ सी लग गई है। यह होड़ बिल्कुल भी बुरी नहीं है। लेकिन घर मकान हमें कमाकर ख़रीदना चाहिए न कि अपनी पुश्तैनी ज़मीन को बेचकर। क्योंकि पुश्तैनी ज़मीन वह संपत्ति होती है जो हमें विपत्ति में सहारा देती है।

साधना शाही,वाराणसी

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6 Comments

Gunjan Kamal

09-Apr-2024 10:48 PM

बेहतरीन

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Babita patel

30-Mar-2024 09:47 AM

Fabulous

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Mohammed urooj khan

23-Mar-2024 12:04 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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